साईं-आशाराम
साईं - आशा कीजिए, जामे धर्म समाय।
मैं भी कुछ करता रहूँ, वो कुछ करता जाय।।
बाप-पूत की गाठरी, ढोवे धर्म-समाज।
खाय अफीम गंदा करें, नर, नारी की लाज॥
कैसा कलजुग आ गया, कैसा संप्रदाय ?
भक्त पूजा-अर्चन करै, गुरु मलाई खाय॥
गुरु मलाई खाय, लाज न
उनको आवे।
कह जैसल कविराय, खुद को
भला बतावे॥